Monday, February 19, 2018
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एक ‘ढ’ गज़ल
तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ हैं यह चौदवें अक्षर से सब रुस्वाइयाँ हैं कैसा बिछाया ज़ाल तू ने अय मनु कि हम ही नहीं पापी यहाँ प...
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गुजराती दलित साहित्यकार प्रवीण गढ़वी,चंदु महेरिया और रमण वाघेलाके साथ साहिल परमार के पहले काव्यसंग्रह 'व्यथापचीसी'...
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हम सदियों से चाहते हैं सम भोग ...सम्भोग ....संभोग. हमारी माँग एक ही रही है सम भोग ......सम्भोग.....संभोग [क्यों भडकता है ...
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छब छबा छब छब छबा छब जल से खेले हाथ. जल को लगे ? हाथ को लगे ? जल को लगे ? हाथ तो क्या उस जल को लगे ? जल तो क्या उस हाथ क...
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