Monday, February 19, 2018

पहुँचे




जैसे दरिया का आब आसमां तलक पहुँचे,
मेरे ये दर्द तेरे जिस्मों जाँ तलक पहुँचे.

बदन था दूर जिगर की तो फ़िर क्या बात कहें,
बात ऐसी चली कि हम वहाँ तलक पहुँचे.

एक चुप्पी की तरह जी रहे थे सदियों से,
आज अल्फ़ाज बन के हम कहाँ तलक पहुँचे.

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