दीप जलते रहें,हम पिघलते रहें
खैर आंसु की महेफिल तो चलती रही
खास बातें तो ऐसी नहीं थीं मगर
वो ही बातें ज़मीं में पनपती रहीं
मेरी माँ ने मुझे पाला था उस तरह
याद उन की मेरे दिल में पलती रही
सर में तूफ़ान था दिल में उफान था
फ़िर वो ही आग क्यूँ ठण्ड बनती रही
मेरे पैरों ने चलना मना कर दिया
मंजिलें मेरी नब्ज़ों में खलती रहीं
रोते रोते मेरे हाथ भर आये और
लफ्ज़ की कश्तियाँ फ़िर उछ्लतीं रहीं
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