नूह् की कश्ती की तरह ज़िन्दगी मिली
जब से सनम मुझे तुम्हारी बन्दगी मिली
राम ने जो खटखटाये हर नगर के द्वार
थरथराती मौत से हैरानगी मिली
घूमता कर्फ्यू मिला है भद्र शहर में
हालात में भद्दी पूरी शर्मिन्दगी मिली
संसद में घूसा शेर भूखा निकला बोल के
नेता के रूप में ये साली गन्दगी मिली
मानिन्द मुसा की तुम्हें चलाता रहूंगा
देखने की दूर तलक दिवानगी मिली
No comments:
Post a Comment