बादल सा
गरजता यह इन्कार भी है वाजीब
करवट सा पलटता यह प्यार भी है वाजिब
जन्घा में साँप बन कर डसता हूँ रातभर मैं
मेरे लिये ये तेरा धिक्कार भी है वाजिब
पीपल के
सूखे पत्ते पलकों में मेरी काँपे
तूफां की तरह तेरी फुत्कार भी है वाजिब
तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ हैं यह चौदवें अक्षर से सब रुस्वाइयाँ हैं कैसा बिछाया ज़ाल तू ने अय मनु कि हम ही नहीं पापी यहाँ प...
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