तेरी मूछें थर थर कांपेगी देख नीकली है सवारी
आठ आसमान चुमने के वास्ते हैं आज मैं ने पाँखे
फैलाई
सात सागर में
घुमने को हाथों के चप्पों से नैया चलाई
खुली जमीन ऊपर,खुले आसमां के नीचे
कोई ऊंचा नहीं था,कोई नीचा नहीं था
खुली जमीं ऊपर,खुले आसमां के नीचे
नीकल आया एक घर
जिस की
नींव में लहु मांस मेरा भरा
मेरे सपनें तूटे,हाथ उलटे बंधें,
चींथडी बन के आकाश जिस के फर्श पे सिमटा
मेरी आंखो की आरपार देख आज नीकली है उस की
निशानी
आठ आसमान चुमने के वास्ते हैं आज मैं ने पाँखे
फैलाई
सात सागर में
घुमने को हाथों के चप्पों से नैया चलाई
अब तो क्षितिज खुली,नयी दुनिया झूली
आज तू भी मानव
और मैं भी मानव
अर्थ मानव का एक ही है – मानव मानव
आज क्षितिज खुली,नयी दुनिया झूली
गुरु वही का वही,शनी वही का वही
किन्तू देखने की रीत आज बिलकुल नयी
पाँव घूमते हुए,हाथ मजबूत हुए
बंध कंठ से मयूर अब गह्कने लगे
सूखी ऊँगलियाँ छलकीं कि टेरों से छूटी सर्जन की
सरवानी
आठ आसमान चुमने के वास्ते हैं आज मैं ने पाँखे
फैलाई
सात सागर में
घुमने को हाथों के चप्पों से नैया चलाई
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