Monday, February 19, 2018

साहिल परमार


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एक ‘ढ’ गज़ल

तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ हैं यह चौदवें अक्षर से सब रुस्वाइयाँ हैं कैसा बिछाया ज़ाल तू ने अय मनु कि हम ही नहीं पापी यहाँ प...