Monday, February 19, 2018

खींचने को तो नहीं आयेंगे















वरिष्ठ दलित कवि -कर्मशील साथी राजु सोलंकीके साथ 



घी और दूध है 
तुम को खाना
पशु जीवित हो
तब तक उस का रसकस पाना
मुर्दा बचे निकम्मा तब ही
खींचने को फिर हमें बुलाना
वह भी जैसे दान किये हो
इतने तौर से कहते कहते :
'ले लो चुतियों
ले जाओ इस को
चोखने भेजा
गुल्ली खाने
कर के चानी सेक पकाने
चमड़ा धो
बाजार में बेचो
ले लो चुतियों
ले जाओ इसको

कब तक ऐसा सुनोगे साथी
कब तक ऐसा रहोगे सुनते
उन सालों को
कह दो कि हम
नहीं आयेंगे
चोखना भेजा
खाना तोकडा
चानी करके तुम ही खाना
तुम ही कुंड में  छब छब करना
बेचना चमड़ा
बेच के पैसा
खूब कमाना
जाओ चुतियों नहीं आयेंगे
पशु उठाने नहीं आयेंगे
खींचने को हम नहीं आयेंगे
जो भी हो तुमसे कर लेना
खींचने को हम नहीं आयेंगे

फेंक दो बंधु आर छुरी और
मटुकी छाछ मटकी फोड़ ही डालो
ले के हंसुए रहो मुकम्मिल
सर उन के बस फोड़ ही डालो
आंते उन की खींच ही डालो
हड्डियाँ उन की फाड़ ही डालो
चीर ही डालो
खीमा कर कुत्तों को डालो
साले  क्या समजे है हम को
भात कढी के खानेवाले
कुछ ना कर पाओ 
हर्ज नहीं है कुछ
पशु उठाने कभी न जाओ
मरना पड़े तो मर भी जाओ
खींचने को पर कभी न जाओ    
 पशु उठाने कभी न जाओ

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