Monday, February 19, 2018

जरुरत



















उन के कैमरे का लैंस
चटखा हुआ है.
मुझे बना के गुलाम
 विविध मुद्रा में 
फोटो खींची हैं
उन लोगों ने
वही कैमरा से.
यह फोटो याने श्रुती और स्मृति
गीता और रामायण
चलती रही बस यही पारायण.
पर अब
मैं
अपने ही कैमरे से
खीच सकता हूँ
फोटो
उन के और मेरे
यथातथ ही.
इसलिए
ये लोग मचाते हैं शोरगुल ;
अलग कैमरा की जरुरत नहीं है,
अलग कैमरा की जरूरत नहीं है.

No comments:

Post a Comment

एक ‘ढ’ गज़ल

तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ तन्हाइयाँ हैं यह चौदवें अक्षर से सब रुस्वाइयाँ हैं कैसा बिछाया ज़ाल तू ने अय मनु कि हम ही नहीं पापी यहाँ प...