Monday, February 19, 2018

जब तुम मेरे पास होती हो




जब तुम मेरे पास होती हो,
आधी रात के गहरे अंधेरे में
स्तनपान के लिए लालायित
बच्चे की आंखो की तरह छटपटातीं 
मेरी आँखों को
छू लेता है मुंहसवेरा
और हलके उजाले के घूंट
तृप्त कर देते हैं
मेरे सूखे अकुलाते हुए कंठ को .

जब तुम मेरे पास होती हो,
धधकते दोपहर की धूपके बिच
निकल आते हैं नीम के झुण्ड,
गिरी हुई पवन के चेहरे पर
छा जाती  है
पोपली बच्ची की मुस्कान
और रोड खोदते हुए मझदूर जैसा
थका हुआ मेरा मन
एकदम हल्का फुल्का
हो जाता है.

जब तुम मेरे पास होती हो
गोल गोल चक्करघिन्नी पर से उतरे हुए
बच्चे के पाँव जैसे
लड़खड़ाते हुए मेरे विचारों को
हासिल होती है स्थिरता
और मैं
निश्चल हो कर
चल पाता हूँ
आगे
और आगे .

जब तुम मेरे पास होती हो
सिकुड़ी हुई उफक
विस्तृत होती जाती है
एक के  बाद एक
और खुलती जाती है
अनहद सुंदरता से भरी
एक दुनिया
जिस के मालिक होते हैं
हम-अपने बिरादर – अपने लोग.

जब तुम मेरे पास होती हो,
मेरी झुग्गी बन जाती है
एक विराट महालय
और मच्छरों की गुनगुनाहट
रचती हैं कई तर्ज
जिस की मिठास
कोल्हापुरी गुड के दडबे से भी
ज्यादा होती है.

जब तुम मेरे पास होती हो,
धुँआती हुई लकड़ी में
आग लगाने
फूंक लगा कर
हाँफते हुए मेरे फेफड़ों को
मिल जाती है नई ताजी हवा
और धुएं से जलती आंखों से
निकलते आँसूं
हो जाते हैं
रातरानी के फूल.

जब तुम मेरे पास होती हो,
होता है सब ऐसा ही,
इसी लिए ही प्रिय,
आसमान में कौंधती हुई बिजली को
गिरती हुई बचाने के लिए
पीछेपीछे दौड़ते हुए
गर्जन जैसे
तेरे साहचर्य की मुझे
खास जरुरत होती है.

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