Monday, February 19, 2018

हमारी जुबाँ




हमारी जुबाँ
उन्हें
ईन्सा कहने से
झिझक रही है
माँ कोने में
चुपके चुपके
सिसक रही है.

सदियों से पले हैं
बड़े बेटे
अशोक के दिल में मंदिर
छोटे शफ़ी के दिल में मस्जिद
मार्टिन के दिल में गिरजाघर
हरमिन्दर के दिल में गुरुद्वारा
छोटे से छोटे
मगन के दिल में
महादेव और रामदेपीर की देहरी.
कल गुरुद्वारा में बहे लाल लहु के धब्बे
कालेपन में सूखें न सूखें कि
हरमिन्दर के दिल पे
मरहम लगे न लगे कि
टूट गये गुम्बज़ मस्जिद के
गिर गयीं
शानों शौकत से
सर उठाये
खड़ी हुईं सदियाँ
चकनाचूर हो गया
गुज़रे ज़माने का गुरुर
झाड़ झाड़ हो कर
झुक गया
आसमां में उड़ता गेरुआ आँचल
गिरावट से
शफ़ी के दिल में पड़ीं
दुःख की दरारें चीख़ रहीं हैं ;
‘बोल तू चूप क्यूँ है
मैं नहीं कहता था कि
तू मेरी भी माँ नहीं है
बोल तू चूप क्यूँ है

सुन रहे हैं
छोटे से छोटे लोग
किसी मिता के दिल में
मीरा रो रही है
किसी रूपा के दिल में
राबिया रो रही है
किसी दलपत के दिल में
बिलख रहा है दादू दयाल
किसी बालु के दिल में
बिलख  रहा है बसवेश्वर
किसी राजू के दिल में
रैदास रो रहा है
किसी फुरकान के दिल में
रो रहे हैं
रामभक्त वाजिद और मुहम्मद जायसी
किसी अंबालाल के दिल से
पुकार उठा है कृष्णभक्त
अब्दुल रहिम खानखाना
किसी साहिल के दिल में
कबीर जाग रहा है
किसी चंदू के दिल में
चीख रहा है
महाप्रभु चैतन्य
कि
हमारी जुबाँ
उन्हें हिन्दू कहने से भी
झिझक रहीं हैं
माँ
कोने में
चुपके चुपके
सिसक रही है  

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