बयाँ के घोंसले को
जैसे तितरबितर कर देता है
छलाँग लगा कर
बन्दर
बस वैसे ही
अर्थव्यवस्था की आंधी
हडबडा देती है कभी
जतन से बिछाए गए
हमारे
बिस्तर को.
बिस्तर के साथ साथ
हमारे जिस्मों में भी
पड़ जाती हैं
सिलवटें पर सिलवटें
और
पारगी आग जलाए और
उड़ जाये मधुमख्खियाँ
बस वैसे ही
मधु संचित करने को तत्पर
हमारे जिस्म से
हरी हरी मक्खियाँ
हो जाती हैं
नदारद.
रह जाते हैं
आइने की
उलटी बाजु जैसे
हमारे चेहरे
चौपट
और अपारदर्शी
घुलमिल जाते हैं उस में
अकुला देनेवाला अतित
और
झुलसता भविष्य.
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