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जब मैं पैदा हुआ था
जब मैं पैदा हुआ था
बच्चा नहीं था –
सपना था सपना
हज़ार हज़ार साल से
कुचली गयी मेरी
मां ने
खौलते हुए अन्याय के खिलाफ़
देखे हुए
धधकते विद्रोह्
का सपना.
मेरी आँखों में
आज भी वैसे का वैसा
ही है
ज़ुर्रियों से
घिरा हुआ
हजार साल पुराना
उस का बेबस
चेहरा.
चेहरे में छलकतीं
आंसु की दो झील.
उस की धारसे
सिंची गयी मेरी
देह.
मुझे याद है
कोसभर दूर के
तुम्हारे कुएँ पर
घंटों तक इंतज़ार
कर के कड़ी धूप में
जेठ की धधकती
दुपहरी को
हाँफते हाँफते घर
आ कर
उसने मुझे पानी
नहीं
पसीना पिलाया था
पसीना.
तुम ने तो सिखाई
थी उस को विनय ;
‘माईबाप हमारे
बच्चे हैं हम
तुम्हारे,
जाने दीजिए मांई बाप.’
मुझे याद है
उस को तुम ने
कूएं के पास फटकने नहीं दिया.
उस को तुम ने
गांव के चौपाल के पास फटकने नहीं दिया.
उस को तुम ने
अक्षर के पास फटकने नहीं दिया.
तुम्हारी कृरता के
कीचड में फंसकर
छटपटाती हुई मेरी
माँ.
तुम्हारे
हिंस्त्र साम्राज्य में
पल पल मरती मेरी
माँ.
वह खुली हवा में
साँस लेगी अब.
धूपमें तपती उस की
देह को
नीम की मीठी छांव
मिलेगी अब.
तुम्हारा कुआँ उस
के पाँव धोएगा अब.
तुम्हारे गांव की
चौपाल
उस का राज्यासन
बनेगी अब.
तुम्हारे अक्षर
उस के हथियार
बनेंगे अब.
देखो,
जो आज तक सिर्फ़
तुम्हारी थी
उस सरस्वती का आज
मैं स्वामी बना हूँ.
जो आज तक सिर्फ़
तुम्हारी थी
उस लक्ष्मी का आज
मैं स्वामी बना हूँ.
मेरी बेटी
गणपती को पशु मान
के
उस के कान मरोडती
है आज.
मैं उस की आँखों में काजल नहीं
मैं उस की आँखों में काजल नहीं
उच्श्रुख्लता
आंजता हूँ.
ज्वाला की लपेट में
आ जायेंगे अब
तुम्हारे फ्लेट
और टेनामेंट्स,
तुम्हारे स्कूल
और तुम्हारे दफ्तर,
तुम्हारी बेडीयाँ
और तुम्हारी चौकियां,
तुम्हारे चौपाल
और तुम्हारे मंदिर,.
मैं शोला हूँ –
तुम ने जलाई हुई
झोंपड़ी की ख़ाकमें
पड़े पड़े सुलगता
हुआ शोला.
मुक्ति की थोड़ी
हवा मिली है मुझे.
धधकती आग बना हूँ
अब.
मुझे याद है
मैं पैदा हुआ था
तब बच्चा नहीं था.
सपना था सपना .
हज़ार हज़ार साल से
कुचली गयी मेरी
माँ ने
खौलते हुए अन्याय
के खिलाफ़ देखे हुए
धधकते विद्रोह्
का सपना.
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