Monday, February 19, 2018

पत्नी से वार्ता




हीरा,
मुझे अफ़सोस होता है
कि हम इन्सान हैं-
समंदर के तले दबे हुए
मोती जैसे
या पृथ्वी के तले डटे हुए
हीरे जैसे इन्सान.
फिर भी
सब से तले हैं इसीलिए ही
हम तिनके के मोल भी नहीं हैं.

काश,
हम इन्सान न होते
और होते धतुरे के फूल
तो यक़ीनन ही विकसित हो पाते
पूर्ण यौवन में
पूर्ण रूप से विकसित
तेरे सुडोल स्तन की तरह
और आकर्षित कर पाते
अपनी शुभ्रता से
बच्चे जैसे मन से
देखनेवाली पुत्लियों को या  फिर
बगैर माईक्रोस्कोप
सीखा पाए होते
छात्रों को
प्रजननशास्त्र के पाठ
बिना खलबली मचाये
बिल्कुल सहज रूपसे
और ऐसा करके
हमारी उल्का
स्लेट पर थूंककर
हाथ से पोंछ लेती है
पहले लिखे गए पर
अनावश्यक बन गए
अक्षरों को,
बस वैसे ही
पोंछ पाये होते हम
उन लोगों के दिमाग से
विराट पुरुष की देह .

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