Monday, February 19, 2018

रोटी की भी है खींचातान


















‘माँ मुझे चंदा दे दे’ की तू जिद छोड़ राम,
यंहां रोटी की भी है खींचातान.

बारह बीते हो साल पर ना पानी आये,ऐसे कुंए जैसा घर
इधर उधर हैं लगी मिट्टी की दीवारें,दीमक के लगे हुए स्तर
छत भी है ऐसी की बारिस में पानी का जी भरके करती है दान
‘माँ मुझे चंदा दे दे’ की तू जिद छोड़ राम,
यंहां रोटी की भी है खींचातान

गाडी का पहिया है कैसा बड़ा, ऐसा रूपया था पहले रानी छाप का
घिसघिस के इतना वो छोटा हुआ कि ना पहुँचे पगार तेरे बाप का
राम की तो बातें बहुत ही पुरानी हैं,इस को पढ़सुन के तू मत बन नादान
‘माँ मुझे चंदा दे दे’ की तू जिद छोड़ राम,
यंहां रोटी की भी है खींचातान

बाप तेरा कोई नहीं दसरथ राजा कि नहीं मैं भी अयोध्या की रानी
राम ने तो मांगा हजीरा महारानी का बुध्धू होने की क्या तू ने भी ठानी?
राजा के घर की तू करता है बात पर, घर के हालात को तो जान 
‘माँ मुझे चंदा दे दे’ की तू जिद छोड़ राम,
यंहां रोटी की भी है खींचातान 

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