यह उस पल की बात है
वो पल कैसे बीते होंगे?
वो पल जिस ने
एक साथ
सूर्य दो दो
दहकते देखे होंगे( आसमां में एक को
और एक को धरती पर)
वो पल कितना सहमे होंगे?
वो पल-
वो पल जिस ने
राज्य के लश्कर सचिव को
पेड़की बिखरी छाँव
में
(एकदम बेबस और बेघर, बेसहारा
एकदम अवमान के बिच
खुद के कोई दोष या
अपराध बिना)
(जो हाथ संविधान
गढ़नेवाले थे उन)
हाथों के बीच मुँह छुपाये
छोटे बच्चे की तरह
रोता और बिलखता हुआ देखा होगा.
वो पल कितने बिलखे होंगे.
उन पलों को कितना विषाद
लिपट गया होगा?
उन पलों में
शतयुगों की सारी
पीडाएं
(ठूंस कर भरी हुई )
एकदम से निकलीं (कलेजा चीर कर)
और पीड़ाएं भोगती विवश कौम के
बेबस लाखों आँख के
आँसू एकाकार हो
एक उस की आँखसे फूट
पड़े होंगें.
उन पलों की सारी
पीड़ा
उस पेड़ के पत्तों को छू गयीं होंगी
और इसलिए धीरे धीरे
उस पेड़ के पत्ते सभी
हिंदवा लिबास छोड़
बुद्ध हो गए होंगे.
वे पल कितना
सहमे होंगे?
सिसके होंगे?
उबले होंगे??
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