सोने के वास्ते फूटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ.
सिर्फ़ सलियों से नहीं धूपछाँव से झाड़ू
बांधते गूंथते जाए
सब के आँगन तेरी निर्मल आँखों की तरह
साफसुथरे होते जाए,
अपना ही घर मैला रहता बालमजी
मक्खियों की गुनगुनाती तान,
सोने के वास्ते फूटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ.
लारी के पहिये के साथसाथ जीवन का
एक एक साल बहे चुप
मौज और मस्ती में झूमते है सब
और हम को ही सहने की धुप
ओढने को खुला आकाश
मेरे बालमजी
पहनने को ठिठुरती हुई रात
सोने के वास्ते फूटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ
थके हुए बालम के
थके हुए मन को
हलके हाथों से सहलाऊं ,
खुलेआम लिपट के सोयें हमें देख चाहे
कोई कहे लाज से मर
जाऊं
तृप्त हो के सोयें सारी रात मेरे बालमजी
अन्गों की दूर हो थकान,
सोने के वास्ते फूटपाथ मेरे बालमजी
अपना तो ऐसा है साथ.
आधी रात के वक्त फूटपाथ पर सोये श्रमिक युग्म को देखकर फूटी
हुई कविता.
औरत झाड़ू बनाने का काम करती थी. बगल में हाथलारी पड़ी थी.
आदमी शायद हाथलारी खींचता होगा.
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