Monday, February 19, 2018

जीवनसंगिनी से




भूरे से  बालों सा झूमता हुआ तुम्हें पहली उस रात का उजियारा याद है?

आँखों के पीछे उगे आयने में नाचते थे रूम झूम झूम  सपनों के चेहरे 
देखे ना  देखे कि झीनी झीनी रेत बन के ऊपर से छप्पर गिरे थे
चन्दाने घुसकर, झाँक कर दरारों से ताली पे ताली लगाई थी वो याद है?
भूरे से बालों सा झूमता हुआ तुम्हें पहली उस रात का उजियारा याद है?

बोतल में  लगे हुए ढक्कन सा मैं और
उस में बाती जैसी तू
हलके उजियारे में खटिया भी गाती थी
किचूड  किचूड चैड  चूं
फटी हुई गुदड़ी पर नयी नयी चादर र्में सिलवट ही सिलवट पड़ी थीं  वो याद है?
फटी हुई गुदड़ी पर नयी नयी चादर र्में झुर्रियाँ ही झुर्रियाँ पड़ी थी वो याद है?
भूरे से बालोंसा झूमता हुआ तुम्हें पहली उस रात का उजियारा याद है?

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